आप का सबसे बड़ा दुश्मन - vaigyatm

मई का वो दिन था दोपहर का समय था सूरज आसमान पर गहरी दस्तक दे चुका था जहा तहा लोग गरमी से राहत के लिए प्रयास रत थे
मैं भी वही सड़क किनारे कुछ खरीदने निकला था मैं ने देखा सड़क के बीच में एक 4 या 5 साल का लड़का खड़ा था  यहाँ तक तो सब ठीक था पर एका एक उस लड़के की नजर उसी की परछाई पर पड़ती है और जैसे ही वह उस परछाई को देखता है आश्चर्य से उसे देखने लगता है । अब होता ये है की जैसे जैसे वो करता परछाई भी वैसा ही वैसा ही करती अब देखने वाली बात ये है की बच्चे के मन में क्या भाव पैदा हो रहे होंगे पहले तो वो उसे कुछ जानवर समझ कर अपने पैरो से उसे मारने की कोशिश करता है पर इतने से काम नहीं बनता है तो अब वो सबसे आसान तरीका अपनाता है भागो ।
अब वो भागता है और जब पीछे देखता है तो परछाई जहा की तहा अब वो बच्चा जोर जोर से रोना शुरू कर देता उसे कुछ समझ में नहीं आता क्या करे हे भगवान ये मेरे पीछे क्या पड़ गया वो यही सोच रहा होगा मम्मी मम्मी चिल्ला कर जोर जोर से रोने लगा हक्का बक्का कभी पीछे देखता कभी आगे देखता भी एक पल के लिए रुक कर अपने पेरो से अपनी ही परछाई को कुचलने की कोशिश करता कभी आगे भागता कभी दायें कभी बाये आप इस बात को इमैजिन कर सकते है की उस समय उस बालक की स्थति कैसी रही होगी।
चलिए एक पल के लिए इस कहानी को छोड़ते है और भय पर बात करते है
न केवल आप बल्कि हम सब अपने जीवन  में किसी न किसी चीज से भयभीत जरूर रहते है किसी को एग्जाम में फेल होने का तो किसी को व्यापार में हानि होने का भय दुर्घटना का भय कभी कभी तो किसी और के जीत जाने का भय या खुद के हार जाने का भय।
      
और आप को पता है इन सारे भय में सबसे ज्यादा भयभीत करने वाला भय कौन सा है मरने का भय।
एक और बात ये जो भय होता है इतना रहस्मय बन चूका है की कभी कभी तो हम भयभीत होते रहते है पर हमें ये पता ही नहीं होता की हम किस बात से भयभीत है ।
जैसे एक बार मै और मेरा एक छोटा भाई रात को घर में अकेले थे तो वो अकेले वाशरूम जाने को तैयार नहीं था मैंने पूछा ऐसा क्यों उसेके पास कोई जबाब नहीं था पर भय तो था पता नहीं किसका पर था ।
तो इसका मतलब भय हावी होकर बार बार हमें भयभीत करता रहता है  और हम जीवन की उन चीजो के लिए भयभीत होते रहते है जिनके लिए रत्ती मात्र भी भयभीत होने की जरुरत नहीं है।
यदि मैं भय के मूल कारण के बारे में बात करू तो वो केवल और केवल अज्ञानता है और यदि जीवन में इस से मुक्त पाना है तो आप को विचार करना प्रारम्भ करना ही होगा क्योकि अनुभवो पर विचार  करने से ही ज्ञान मिलता है।
इसके पहले मैंने एक 4या 5 साल के बच्चे की कहानी बताई है आप बस एक काम करिये एक पल के लिए उस बच्चे की जगह खुद को रखिये आप क्या करते मै 100 प्रतिसत दावे के साथ कह सकता हु की आप अपनी परछाई को अनदेखा कर देते आप को कोई फर्क ही नहीं पड़ता ।
पर प्रश्न केवल एक आखिर क्यों और इसका उत्तर भी आप जानते है की आप को पता है की ये तो मात्र परछाई है जो सूर्य के प्रकाश के कारण बन रही है और जैसे ही आप छाव पर जाओगे परछाई गायब।


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पर उस छोटे बालक का क्या वो तो इतना भयभीत हो गया है अब धुप में जाना ही बंद कर चूका है।कारण उसे इस बात का ज्ञान ही नहीं की ये परछाई क्या होती है और वो बिन कुछ जानने की कोशिश किये अपनी ही परछाई से डरने लगता है और ये  डर  स्थाई होकर भय में तब्दील हो जाता है
तो यही तो मैं समझना चाहता हु की भय केवल ज्ञान से परास्त किया जा सकता है जिस दिन उस लड़के को ये ज्ञान हो गया की ये परछाई क्या चीज है उस दिन उसके अंदर से भय ख़त्म।
जो मूल बात है वो शायद आप को समझ में आ गयी होगी और मैं हमेशा यही कहता हु की पहला तो दुःख और दूसरा भय ये हमारे शरीर में वैसे ही बने रहते है जैसे आत्मा ये तभी हमें छोड़ते जब हम होते ही नहीं।
और इसलिए यदि आप भी निर्भीक होकर जीना चाहते है तो आप जीवन पर विचार करना प्रारम्भ करे क्योकि भय दुःख और कर जीवन के साथ ही शुरू होते है और जीवन के ख़त्म होने पर ख़त्म तो जाते है
जैसे आज आप को मारने का भय होगा पर जब आप वास्तव में अपनी उम्र पूरी कर मर जायेंगे तो हो ये भय खत्म। मरे हुए को मरने का क्या डर
तो पहली चीज तो साफ होती है  पर दूसरी चीज जो आप के साथ खेलता रहता है वो है आप का मन आप का माइंड यदि आप ने या मन को समझ लिया तो सांझो आप की बची हुई कसार पूरी हो जाती है
और में जो आप को ये चीजे बता रहा हु ये कोई आज की बात नहीं राम से लेकर कृष्ण तक और गौतम से लेकर ईसा तक सभी ने यही बात कही है
समस्या का समाधान हमारे चारो और है लेकिन हम कभी रुक कर विचार करते ही नहीं ।
जब में ये आर्टिकल लिखना शुरू किया था तो मेरे एक मित्र ने पूछा इसका टाइटल है वो भय से मुक्ति क्यों ये डर से मुक्ति भी तो हो सकता है।
तो मुझे लगता है की ये बात मुझे  लोगों को भी जरूर बताना चाहिये जैसे मैंने पहले भी कहा है प्रश्न करिये यहाँ ये ईस्वर का नियम है या ऐसा ही होता है ये वो उत्तर है जो भ्रम फ़ैलाने का काम करते है
तो प्रश्न है भय और डर का तो तीसरी चीज भी सामने आती है वो है आशंका
दरअसल डर वो गुण होता है जो हर उस जीव में मिलेगा जो जीवित है भय से मुक्ति पा सकते है पर डर से नहीं।
डर एक तरह का अलार्म सिस्टम होता है जो हमें सचेत करता है और मेरा दावा है की चाहे राम हो या कृष्ण सभी के अंदर डर जरूर रहा होगा ।
परंतु जब डर स्थायी हो जाता है तो उसे भय कहते है
जैसे आप जंगल से जा रहे है और निहथे है और एका एक आप को शेर की दहाड़ सुनाई देती है तो आप तुरंत एक सेफ जगह पर चले जायेंगे ये आप ने क्यों किया क्यों की आप के अंदर डर ने आप को सचेत कर दिया।
      
पर यदि आप शेर के डर से जंगल में ही न जाये तो समझिये वो डर स्थायी होकर भय बन गया है।
वही आशंका डर और भय के बीच के स्थति होती है यानि जब भय कमजोर होता है जैसे पेपर अच्छा न जाने पर फेल होने की आशंका।
तो ये तो हुई भय और डर की बात पर जीवन पर भयमुक्त रहना एक कला है जो केवल और केवल ज्ञान से भी प्राप्त की जा सकती है
कोई किताब कोई व्यक्ति आप को ये नहीं सिखा सकता है उठिए जागिये कब तक जीवन छोटे उद्देश्यो के लिए संघर्ष करते रहोगे आप युवा हो देश बदले का समर्थ है आप स्वयं के बारे में जीवन के बारे में  अपने अस्तित्व के बारे में सोचिये ।
सोचिये आप हो तो क्यों हो ?से समाज क्यों है ?ये धरती क्यों है ?जीवन क्या है ?मेरा हमारा हमसब का अस्तित्व क्या है ?ये वो क्रन्तिकारी प्रश्न है जो एक सामान्य ब्यक्ति को असाधरण बना सकते है
जो जीवन को स्वयं के छोटे उद्देश्यो के लिए जीना छोड़ देते है भय और दुःख उनसे उसी तरह दूर रहते है जिस तरह प्रकाश से अंधयकार।
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